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पंचसंग्रह : ४ . इस प्रकार अनेक जीवों की अपेक्षा पांच बंधहेतु के दो सौ छियानवै भंग जानना चाहिए।
अब छह बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं. १. पूर्वोक्त पांच बंधहेतुओं में भय को मिलाने पर छह हेतु होते हैं । यहाँ भी (२६६) दो सौ छियानवै भंग होते हैं।
२. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर भी छह हेतु होते हैं । इनके भी (२६६) दो सौ छियानवै भंग होते हैं। - इस प्रकार छह बंधहेतु के दो प्रकार हैं और उनके कुल भंग (२६६४२६६=५६२) पांच सौ बानवे होते हैं।
अब सात हेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं
१, पूर्वोक्त पांच बंधहेतुओं में भय और जुगुप्सा दोनों को मिलाने पर सात हेतु होते हैं। उनके भी वही (२६६) दो सौ छियानवै भंग होते हैं।
इस प्रकार प्रमत्तसंयतगुणस्थान के बंधहेतुओं के कुल मिलाकर (२६६+५६२+२९६=१,१८४) ग्यारह सौ चौरासी भंग होते हैं ।
प्रमत्तसंयतगुणस्थान के बंधहेतु और उनके भंगों का दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
बंधहेतु
हेतुओं के विकल्प
प्रत्येक विकल्प के भंग
कुल भंगसंख्या ५ । १ वेद, १ योग, १ युगल, १ कषाय २९६ २६६ ६ पूर्वोक्त पांच, भय
२६६ ६ " " जुगुप्सा
२६६ ___७ । पूर्वोक्त पांच, भय, जुगुप्सा
२६६ । २९६
. कुल योग. ११८४ Jain Education International For Private & Personal use only
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