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बधहेतु प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२
७१ एक होने से काय के स्थान पर एक को रखकर पूर्वोक्त अंकों का क्रमशः गुणा करने पर भंग (१,३२०) तेरह सौ बीस होते हैं।
२. अथवा जुगुप्सा और पांच काय का वध मिलाने से भी तेरह बधहेतु के ऊपर बताये गये अनुसार (१,३२०) तेरह सौ बीस भंग होते हैं।
३. अथवा भय, जुगुप्सा और कायचतुष्क का वध मिलाने पर तेरह हेतु होते हैं। यहाँ कायस्थान पर पांच का अंक रखकर क्रमशः अंकों का गुणा करने पर (६,६००) छियासठ सौ भंग होते हैं ।
इस प्रकार तेरह बंधहेतु तीन प्रकार से होते हैं और उनके कुल भंगों का योग (१,३२० + १,३२०+६,६०० =६,२४०) बानवै सौ चालीस होता है। । उक्त प्रकार से तेरह बंधहेतु के भंग बतलाने के बाद अब चौदह बधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं
पूर्वोक्त आठ बंधहेतु में पांच काय का वध, भय और जुगुप्सा को मिलाने पर चौदह बंधहेतु होते हैं। पांच काय का पंचसंयोगी एक भंग होने से कायस्थान में एक अंक रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१,३२०) तेरह सौ बीस भंग होते हैं।
चौदह बंधहेतुओं में विकल्प नहीं होने के यह एक ही भंग होता है।
इस प्रकार पांचवें देशविरतगुणस्थान में आठ से चौदह पर्यन्त के बंधहेतुओं के कुल भंगों का योग एक लाख सठ हजार छह सौ अस्सो (१, ६३,६८०) होता है। __पांचवे देशविरतगुणस्थान के बंधहेतु और उनके भंगों का बोधक प्रारूप इस प्रकार है
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