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________________ पंचसंग्रह : ४ ग्यारह हेतु होते हैं । यहाँ भी कार्यहिंसा के स्थान पर दस का अंक रख कर परस्पर अंकों का गुणा करने पर (१३,२०० ) तेरह हजार दौ सौ भंग होते हैं 1 ७० इस प्रकार ग्यारह हेतु चार प्रकार से होते हैं । उनके कुल भंगों का योग (६६०० + १३,२००+१३,२००+१३,२०० =४६२००) छियालीस हजार दो सौ है । अब बारह हेतु और उनके भंगों का विचार करते हैं १. पूर्वोक्त आठ हेतु में पांच काय की हिंसा को ग्रहण करने पर बारह हेतु होते हैं। पांच काय का पंचसयोगी एक ही भंग होने से कार्यहिंसा के स्थान पर एक को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१.३२० ) तेरह सौ बीस भंग होते हैं । 1 २. अथवा कायचतुष्कवध और भय को मिलाने पर बारह हेतु होते हैं | पांच काय के चतुष्कसंयोगी पांच भंग होने से कार्यहिंसा के स्थान पर पांच रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर ( ६,६०० ) छियासठ सौ भंग होते हैं । ३. अथवा जुगुप्सा और कायचतुष्कवध को मिलाने पर भी बारह हेतु होते हैं । इनके भी ऊपर बताये गये अनुसार ( ६,६०० ) छियासठ सौ भंग होते हैं । ४. अथवा कायत्रिकवध और भय, जुगुप्सा को मिलाने से भी बारह हेतु होते हैं। पांच काय के त्रिकसंयोग में दस भंग होने से कार्यहिंसा के स्थान पर दस को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर ( १३२०० ) तेरह हजार दो सौ भंग होते हैं । इस प्रकार बारह हेतु चार प्रकार से होते हैं । उनके कुल भंग (१,३२०+६,६००+६,६००+१३,२००=२७,७२० ) सत्ताईस हजार सात सौ बीस होते हैं । अब तेरह बंधहेतु का विचार करते हैं— १. पूर्वोक्त आठ बंध हेतुओं में पांच काय का वध और भय को होते हैं। पांच काय का मलाने पर तेरह बंधहेतु पंचसंयोगी भंग For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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