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________________ पंचसंग्रह पूर्वाचार्यों ने इस संख्या को तीसरे यमलपद से ऊपर की और चौथे यमलपद से नीचे की संख्या कहा है।' ___मनुष्यप्रमाण की हेतुभूत राशि को तीसरे यमल पद से ऊपर की कहने में कारण पांचवें और छठे वर्ग का गुणाकार है। पांचवाँ और छठा वर्ग तीसरे यमल में तथा सातवां और आठवाँ वर्ग चौथे यमल में आता है। मनुष्यप्रमाण की हेतुभूत संख्या छठे वर्ग से अधिक है । क्योंकि वह संख्या छठे और पांचवें वर्ग के गुणाकार जितनी है, जो सातवें वर्ग से कम है। इसीलिये मनुष्यसंख्या की प्रमाणभूत राशि को तीसरे यमलपद से अधिक और चौथे यमलपद से कम कहा है। अथवा पूर्वोक्त राशि के छियानवें छेदनक होते हैं । छेदनक यानि आधा-आधा करना। अर्थात् उनतीस अंकप्रमाण राशि को पहली बार आधा करें, दूसरी बार उसका आधा करें, तीसरी बार उसका आधा करें। इस प्रकार आधा-आधा छियानवै बार करें तो छियानवैवीं बार में एक का अंक आयेगा और इसी को इसके विपरीत रीति से कहें तो छियानव बार स्थान को दुगुना करें, जैसे कि एक और एक दो, दो और दो चार, चार और चार आठ, इस तरह छियानव बार दुगुना-दुगुना करने पर छियानवैवीं बार में उपयुक्त राशि प्राप्त होती है। प्रश्न-यहाँ छियानवै छेदनक क्यों होते हैं ? उत्तर-पहले वर्ग के दो छेदनक होते हैं—पहला छेदनक दो और दूसरा छेदनक एक । दूसरे वर्ग के चार छेदनक होते हैं । अर्थात् दूसरे वर्ग की संख्या के आधे-आधे भाग चार बार होते हैं। जैसे कि पहला छेदनक आठ, दूसरा छेदनक चार, तीसरा छेदनक दो और चौथा छेदनक एक । इसी रीति से तीसरे वर्ग के आठ छेदनक, चौथे वर्ग के १ दोवित्तिवग्गा जमलपयंति भन्नइ–दो-दो वर्ग के समूह को यमलपद कहते –अनुयोगद्वारचूणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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