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________________ २६ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा : अस्सी भंगों को दो से गुणा करने पर प्राप्त राशि में दो एवं अस्सी को मिलाना चाहिये (८०४२% १६० +२+८० =२४२) । जिससे पांच पद के कुल दो सौ बयालीस भंग होते हैं, जिन्हें पांचवें बिन्दु के ऊपर रखना चाहिये। अब छह पद के भंग कहते हैं—पूर्वोक्त पांच पद की दो सौ बयालीस भंग संख्या में नीचे के दो अंक से गुणा करना चाहिये और उसमें दो तथा जिस संख्या में दो से गुणा किया है, उस दो सौ बयालीस की संख्या को मिलाने पर छह पद की कुल भंगसंख्या सात सौ अट्ठाईस होती है। जिसका रूप इस प्रकार होगा (२४२x२= ४८४ + २४२+२= ७२८)। इसको छठे बिन्दु के ऊपर रखना चाहिये । ___अब सात पद की भगसंख्या बतलाते हैं कि पूर्वोक्त सात सौ अट्ठाईस को दो से गुणा करके दो और पूर्वोक्त सात सौ अट्ठाईस को मिलाने पर कुल संख्या (७२८४२+२+७२८-२१८६) इक्कीस सौ छियासी होगी। जिसे सातवें बिन्दु पर रखना चाहिये। अब आठ पद की भंगसंख्या बतलाते हैं कि पूर्वोक्त इक्कीस सौ छियासी को दो से गुणा करके उसमें दो और सात पद की भंगसंख्या इक्कास सौ छियासी को मिलाया जिससे आठ पद की कुल भंगसंख्या पैंसठ सौ साठ (२१८६४२+२१८६ +२= ६५६०) हो जाती है। सरलता से समझने के लिये जिसका प्रारूप इस प्रकार का है२ ८ २६ ८० २४२ ७२८ २१८६ ६५६० २ २ २ २ २ २ २ २ इस प्रकार सासादन आदि आठ गुणस्थानों के द्विक आदि के संयोग से बनने वाले भंगों की विधि और उनकी संख्या जानना चाहिये । अब इन्हीं भंगों को गिनने की दूसरी रीति कहते हैं अहवा एक्कपईया दो भगा इगिबहुत्तसन्ना जे। ते च्चिय पयवुड्ढीए तिगुणा दुगसंजुया भगा ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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