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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६ गुणस्थानों की सत्यदप्ररूपणा
मिच्छा अविरयदेसा एमत्त अपमत्तया सजोगो य ।
सम्वद्ध इयरगुणा नाणाजीवेसु वि न होंति ॥६॥ शब्दार्थ-मिच्छा-मिथ्यात्व, अविरय-अविरतसम्यग्दृष्टि, देसादेशविरत, पमत्त अपमत्तया-प्रमत्त और अप्रमत्त, सजोगी--सयोगिकेवली, य-तथा, सव्वद्धं-सर्व काल, सर्वदा, इयरगुणा—इनके सिवाय दूसरे गुणस्थान, नाणाजीवेसु-अनेक जीवों में, वि-भी, न—नहीं, होंति-होते हैं ।
गाथार्थ-मिथ्यात्व, अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्त और अप्रमत्त संयत तथा सयोगिकेवली गुणस्थान सर्वदा-सर्व काल होते हैं और इनके सिवाय दूसरे गुणस्थान अनेक जीवों की अपेक्षा भी सर्वदा नहीं होते हैं। विशेषार्थ-सत्पदप्ररूपणा की दृष्टि से गाथा में स्पष्ट किया है कि नाना जीवों को अपेक्षा चौदह गुणस्थानों में से कौन-कौन से गुणस्थान तो सर्वदा पाये जाते हैं और कौन से नहीं पाये जाते हैं। __ सर्वप्रथन सदैव प्राप्त होने वाले गुणस्थानों का निर्देश किया है कि मिथ्यादृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगिकेवली ये छह गुणस्थान सर्वकाल होते हैं।' अर्थात् इन छह गुणस्थानवी जीव निरन्तर होते हैं तथा इन छह गुणस्थानों से शेष रहे सासादनसम्यग्दृष्टि, मिश्र, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिबादरसंपराय, सूक्ष्मसंपराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह और अयोगिकेवली, ये आठ गुणस्थान एक जीव और अनेक जीवों की अपेक्षा सर्वकाल नहीं होते हैं। अर्थात् यह सम्भव है कि किसी समय इन आठ गुणस्थानों में से एक भी गुणस्थान में कोई जीव न हो। यदि किसी समय हों तो आठ में से कोई एक गुणस्थान में होते हैं, किसी १ मिथ्यादृष्टि जीव तो प्रागुत्पन्न और उत्पद्यमान निरन्तर होते हैं और शेष
पाच गुणस्थान वाले जीव प्रागुत्पन्न तो निरन्तर होते हैं, परन्तु उत्पन्न होते हों, ऐसा नहीं भी होता है । क्योंकि उनका विरहकाल होता है ।
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