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गाथा ५५
१३१-१३२ उपशमश्रेणि, उपशांतमोहगुणस्थान, पंचेन्द्रिय गर्भज मनुष्यत्व, १३२ अनुत्तरदेवत्व, सातवीं पृथ्वी का नारकत्व और क्षपकणि की प्राप्ति का अनेक जीवापेक्षा जघन्य उत्कृष्ट काल
गाथा ५६
१३२-१३४ एक से आठ समय तक निरंतर मोक्ष में जाने वाले १३३
जीवों की संख्या गाथा ५७
१३४-१३७ गर्भज तिर्यंच, मनुष्य, देव, नारक, संमूच्छिम मनुष्य, विक- १३५
लेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्पत्ति की अपेक्षा विरहकाल गाथा ५८
१३७-१४१ जीवस्थानों में एक जीवापेक्षा अन्तर गाथा ५६
१४१-१४३ देवगति सम्बन्धी जघन्य अन्तरकाल
१४१ गाथा ६०
१४३-१४५ देवगति सम्बन्धी उत्कृष्ट अन्तरकाल गाथा ६१
१४५-१५० एक जीवापेक्षा गुणस्थानों का अन्तरकाल
१४६ गाथा ६२, ६३
१५१-१५३ अनेक जीवापेक्षा गुणस्थानों का अन्तरकाल
१५१ गाथा ६४
१५३-१५७ गुणस्थानों में भावप्ररूपणा
जीवस्थानों में भावप्ररूपणा गाथा ६५
१५७-१५८ गर्भज मनुष्यों, मनुष्यनियों, तेजस्काय जीवों का अल्पबहुत्व १५७ गाथा ६६, ६७, ६८, ६६
१५८-१६७ देव और नारकों, खेचर, जलचर, थलचर आदि का अल्प- १५६ बहुत्व
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