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पंचसंग्रह : २
गो० जीवकांड में एक अन्तर्मुहूर्त में ६६३३६ क्षुद्र बताए है, यथा
तिण्णिसया छत्तीसा छावट्टि सहस्सगाणि मरणाणि ।
अंतोमुत्तकाले तावदिया चेव खुद्दभवा ॥१२३।। अर्थात् लब्ध्यपर्याप्तक जीव एक अन्तमुहूर्त ६६३३६ बार मरण करता है । अतएव एक अन्तर्मुहूर्त में उतने ही यानि ६६३३६ क्षुद्रभव होते हैं और
सीदी सट्ठी तालं वियले चउवीस होति पंचक्खे ।
छावट्ठि च सहस्सा सयं च बत्तीस भेयक्खे ॥१२४।। उन ६६३३६ भवों में से द्वीन्द्रिय के ८०, त्रीन्द्रिय के ६०, चतुरिन्द्रिय के ४०, पंचेन्द्रिय के २४ और एकेन्द्रिय के ६६१३२ क्षुद्रभव होते हैं।
इस प्रकार दिगम्बर परम्परा के अनुसार एक श्वास में एकेन्द्रिय निगोदिया जीव के १८ क्षुद्रभव होते हैं। .
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