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________________ २२३ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट भगवन् ! कोई भी निगोद जीव बारम्बार निगोद में उत्पन्न हो तो उसकी कायस्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट काल की अपेक्षा अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण अनन्तकाल और क्षेत्र से ढाई पुद्गलपरावर्तन काल है। __स्त्रीवेद विषयक कायस्थिति संबन्धी मतान्तर इत्थीवेए णं भते ? इत्थीवेए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! १. एगेणं आएसेणं जहन्नणं एगं समयं, उक्कोसेणं दसोत्तरं पलिओवमसयं पुवकोडिपुहुत्तमब्भहियं । २. एगेणं आएसेणं जहन्नणं एक समयं, उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुवकोडिपुहुत्तमब्भहियाई। ३. एगेणं आएसेणं जहन्नणं एग समयं, उक्कोसेणं चोद्दस पलिओवमाई पुवकोडिपुहुत्तमब्भहियाई । ४. एगेणं आएसेणं जहन्नणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुवकोडिपुहुत्तमब्भहियं । ५. एगेणं आएसेणं जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्त पुवकोडिपुहुत्तमब्भहियं ति । भगवन् ! स्त्रीवेद का स्त्रीवेदपने में निरंतर कितना काल होता है ? गौतम ! १. एक आदेश से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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