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________________ २ दिगम्बर साहित्य में निर्देशित स्थावर तस जीवों की संख्या का प्रमाण १ संसारी जीवों के दो प्रकार हैं- - त्रस और स्थावर । द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव त्रस और जिनके सिर्फ स्पर्शनेन्द्रिय होती है, ऐसे वे जीव स्थावर कहलाते हैं । प्रकृत में पहले स्थावर जीवों की संख्या का प्रमाण बतलाते हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय ये पांच प्रकार के जीव स्थावर हैं । पृथक्-पृथक् जिनकी संख्या इस प्रकार है— शलाकात्रय निष्ठापन की विधि से लोक का साढ़े तीन बार गुणा करने से तेजस्कायिक जीवों का प्रमाण निकलता है तथा पृथ्वी, जल, वायुकायिक जीवों का उत्तरोत्तर तेजस्कायिक जीवों की अपेक्षा अधिक अधिक प्रमाण है | इस अधिकता के प्रतिभागहार का प्रमाण असंख्यात लोक है । उक्त संक्षिप्त कथन का आशय यह है— लोक प्रमाण ( जगच्छ्र ेणी के घन का जितना प्रमाण है, उस के बराबर ) शलाका, विरलन, देय इस प्रकार तीन राशि स्थापन करना । विरलन राशि का विरलन कर (एक - एक बिखेर कर ) प्रत्येक एक के ऊपर उस लोक प्रमाण देय राशि का स्थापन करना और उन देय राशियों का परस्पर गुणा करना और शलाका राशि में से एक कम करना । इनसे उत्पन्न महाराशि प्रमाण फिर विरलन और देय ये दो राशि स्थापन करना तथा विरलन राशि का विरलन कर प्रत्येक १. गोम्मटसार जीवकांड गा. २०४ - २११ तथा गा. १७८ - १७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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