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बधक प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६-६७
शब्दार्थ -- तत्तोणुत्तरदेवा — उनसे अनुत्तर देवा, तत्तो— उनसे, संखेज्जसंख्यातगुणे, जाणओ – आनत तक के, कप्पो – कल्प, तत्तो – उनसे, असंखगुणिया - असंख्यातगुणे, सत्तम छट्ठी-सातवीं और छट्ठी पृथ्वी के नारक, सहस्सारी - सहस्रार स्वर्ग के देव ।
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सुक्कंमि - शुक्र में, पंचमाए - पांचवीं पृथ्वी में, लंतय-लांतक में, चोत्थोए— चौथी पृथ्वी में, बंभ - ब्रह्म देवलोक, तच्चाए - तीसरी पृथ्वी में, माहिंदसणं कुमारे - माहेन्द्र और सनत्कुमार देवलोक में, दोच्चाए — दूसरी पृथ्वी में, मुच्छिमा - संमूच्छिम, मणुया - मनुष्य ।
गाथार्थ - उनसे अनुत्तर देव असंख्यात गुणे हैं, उनमें आनत कल्प तक के देव अनुक्रम से संख्यात गुणे हैं, उनसे क्रमशः सातवीं और छठी पृथ्वी के नारक तथा सहस्रार देव असंख्यात गुणे हैं ।
शुक्र कल्प और पांचवीं नरक पृथ्वी में, लांतक में, चौथी नरकपृथ्वी में, ब्रह्म देवलोक में, तीसरी नरकपृथ्वी में, माहेन्द्र कल्प में, सनत्कुमार देवलोक में और दूसरी नरकपृथ्वी में उत्तरोत्तर अनुक्रम से असंख्यातगुणं असंख्यातगुणं जीव हैं। उनसे संमूच्छिम मनुष्य असंख्यातगुण हैं ।
विशेषार्थ - बादर पर्याप्त तेजस्काय जीवों से अनुत्तर विमानवासी देव असंख्यातगुण हैं। क्योंकि वे क्षेत्र पल्योपम के असख्यातवे भाग में रहे हुए आकाशप्रदेश प्रमाण हैं । उन अनुत्तर देवों से आनत कल्प तक के देव अनुक्रम से संख्यातगुण है । वे इस प्रकार जानना चाहिए ।
अनुत्तर विमानवासी देवों से उपरितन ग्रैवेयक के प्रतर के देव संख्यातगुण हैं । क्योंकि वे क्षेत्र पल्योपम के बड़े असंख्यातवें भाग में रहे हुए आकाशप्रदेश प्रमाण हैं और इसका कारण यह है कि अनुत्तर विमानों की अपेक्षा ग्रैवेयक विमान अधिक हैं । वे इस प्रकार जानना चाहिए कि अनुत्तर देवों के तो पांच ही विमान हैं और ग्रैवेयक के
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