SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८ दिगम्बर कार्मग्रन्थिकों का मार्गणास्थानों में योग कथन मार्गणा के बासठ भेदों में योगों को इस प्रकार बतलाया है गतिमार्गणा की अपेक्षा नारक और देवों में औदारिकद्विक - औदारिक और औदारिकमिश्र काययोग तथा आहारकद्विक आहारक और आहारकमिश्र काययोग इन चार योगों को छोड़कर शेष ग्यारह योग होते हैं । तिर्यंचों में वैक्रिय, वैक्रियमिश्र काययोग, आहारक और आहारकमिश्र काययोग इन चार योगों को छोड़कर शेष ग्यारह योग तथा मनुष्यों के वैक्रियद्विक को छोड़कर शेष तेरह योग होते हैं । इन्द्रियाणा की अपेक्षा एकेन्द्रियों में कार्मण काययोग और औदारिक द्विक ये तीन योग होते हैं । विकलेन्द्रिय में उपर्युक्त तीन योग तथा अन्तिम वचनयोग अर्थात् असत्यामृषा वचनयोग सहित चार योग तथा पंचेन्द्रियों में सर्व योग होते हैं । कायमार्गणा में पृथ्वी आदि पांचों स्थावरकायिकों में कार्मण काययोग और औदारिकद्विक ये तीन योग तथा त्रसकायिकों में सभी योग होते हैं । योगमार्गणा की अपेक्षा स्व-स्व योग वाले जीवों के स्व-स्व योग होते हैं । अर्थात् सत्यमनोयोगियों के सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोगियों के असत्यमनोयोग इत्यादि । वेदमार्गणा की अपेक्षा पुरुषवेदियों के सभी योग होते हैं तथा स्त्रीवेदी और नपुंसकवेदी जीवों के आहारकद्विक को छोड़कर शेष तेरह योग होते हैं । कषायमार्गणा की अपेक्षा क्रोधादि चारों कषाय वाले जीवों में सभी योग पाये जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy