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________________ योगोपयोगमार्गणा-अधिकार : परिशिष्ट २ २३ सामायिक रूप ही हैं फिर भी पूर्वपर्याय के छेदादि रूप विशेष के कारण छेदोपस्थापनीय आदि चारित्र पहले सामायिक चारित्र के शब्द और अर्थ की अपेक्षा पृथक् हो जाते हैं और पहले में पूर्वपर्याय का छेद आदि किसी भी प्रकार का विशेष नहीं होने से सामायिक ऐसा सामान्य नाम ही रहता है । सामायिक के दो भेद हैं--(१) इत्वर और (२) यावत्कथित । इनमें से भरत और ऐरवत क्षेत्र में आदि और अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ में जिसे पंच. महावतों का उच्चारण नहीं कराया गया है, ऐसे नवदीक्षित शिष्य के अल्पकाल के लिये होने वाले चारित्र को इत्वर सामायिक और दीक्षा स्वीकार करने के काल से लेकर मरण पर्यन्त के चारित्र को यावत्कथित कहते हैं। यह भरत और ऐरवत क्षेत्र के आदि और अन्तिम को छोड़कर मध्य के बाईस तीर्थंकरों के तीर्थ में एवं महाविदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों के तीर्थ में विद्यमान साधुओं का समझना चाहिये । इसका कारण यह है कि उनके चारित्र की उत्थापना नहीं होती है । अर्थात् उनको बड़ी दीक्षा नहीं दी जाती है । प्रारम्भ से ही उनको चार महाव्रत स्वीकार कराये जाते हैं और जीवनपर्यन्त वे उनका निरतिचार पालन करते हैं। छेदोपस्थापनीय-जिस चारित्र में पूर्वपर्याय का छेद और महाव्रतों का स्थापन किया जाता है, उसे छेदोपस्थापनीय चारित्र कहते हैं। गुरु जब छोटी दीक्षा देते हैं तब मात्र 'करेमि भंते' का उच्चारण कराते हैं और उसके बाद योगोद्वहन करने के बाद बड़ी दीक्षा देते हैं और उस समय पांच महाव्रतों का उच्चारण कराते हैं। जिस दिन बड़ी दीक्षा ली जाती है, उस दिन से दीक्षावर्ष की शुरुआत होती है और पूर्व की दीक्षापर्याय कम कर दी जाती है। यह बड़ी दीक्षा छेदोपस्थापनीय चारित्र कहलाती है। छेदोपस्थापनीय चारित्र के दो भेद हैं-(१) सातिचार और (२) निरतिचार । इनमें से इत्वर सामायिक वाले नवदीक्षित शिष्य को जो पांच महाव्रतों का आरोपण होता है-बड़ी दीक्षा दी जाती है, वह अथवा एक तीर्थकर के तीर्थ में से अन्य तीर्थंकर के तीर्थ में आने पर ग्रहण किया जाता है, जैसे कि भगवान पार्श्वनाथ के तीर्थ में से वर्धमान स्वामी के तीर्थ में आते हुए साधु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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