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पंचसंग्रह (१) है और उससे भी मनपर्याप्ति अधिक सूक्ष्म है। एतद्विषयक दृष्टान्त यह है-सूत कातने और काष्ठ घड़ने की तरह । मोटा सूत और बारीक सूत कातने वाली एक साथ कातना प्रारम्भ करती हैं लेकिन उनमें से मोटा सूत कातने वाली जल्दी पूरा कर लेती हैं और बारीक सूत कातने वाली लम्बे समय में पूरा करती हैं। इसी प्रकार काष्ठ घड़ने में भी यही क्रम समझना चाहिए । खंभा आदि मोटी कारीगरी का काम थोड़े से समय में और यदि उसी खंभे को पत्ररचना, पुतलियों आदि सहित बनाया जाये तो लम्बे काल में तैयार होता है।
-तत्त्वार्थभाष्य ८/१२, प्रज्ञापनासूत्र
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