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________________ योगोपयोगमार्गणा - अधिकार : परिशिष्ट २ अधिकारों के द्वारा जीवस्थानों का समग्ररूपेण विवेचन किया है । लेकिन यहाँ इन चारों में से स्थान की अपेक्षा जीवस्थानों के भेद बतलाये हैं । जीवस्थानों के क्रमशः चौदह, इक्कीस, तीस, बत्तीस, छत्तीस, अड़तीस, अड़तालीस, चउवन और सत्तावन भेद होते हैं । इन भेदों में चौदह भेद मुख्य हैं और अपेक्षा से भेद किये जाने पर उनके इक्कीस आदि भेद बनते हैं । जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है— जीवस्थानों के चौदह भेद बादर एकेन्द्रिय x २ अपर्याप्त पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय x २ अपर्याप्त - पर्याप्त द्वीन्द्रिय × २ त्रीन्द्रिय × २ X२ चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय x २ संज्ञी पंचेन्द्रिय x २ द्वीन्द्रिय × ३ त्रीन्द्रिय × ३ × ३ चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय x ३ संज्ञी पंचेन्द्रिय × ३ 11 Jain Education International 22 ܕܙ " 21 71 "" जीवस्थानों के इक्कीस भेद बादर एकेन्द्रिय X ३ लब्ध्यपर्याप्त, निवृत्यपर्याप्त (करण - अपर्याप्त), पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय x ३ लब्ध्यपर्याप्त, निवृत्यपर्याप्त (करण - अपर्याप्त), पर्याप्त 21 " 77 77 11 "" "! 21 17 "" 27 "" "1 13 33 22 11 11 For Private & Personal Use Only || || || 11 ॥ ॥ ॥ # G ५ r ४ Ο Ο १४ m m २१ www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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