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________________ १९६ पंचसंग्रह (१) सासादन की तरह मिश्र गुणस्थान में भी मति आदि को अज्ञान मानकर अज्ञानत्रिक में तीन गुणस्थान मानना चाहिये । । यहाँ अज्ञानत्रिक में तीन गुणस्थान मानने के मत को स्वीकार किया गया है। ___ दर्शनमार्गणा के तीन भेदों-चक्ष , अचक्ष और अवधिदर्शन में पहले मिथ्यात्व से लेकर क्षीणमोह पर्यन्त बारह गुणस्थान होते हैं। वे इस अभिप्राय से माने हैं कि ये तीनों दर्शन क्षायोपशमिक हैं और क्षायोपशमिक भाव बारहवें गुणस्थान तक पाये जाते हैं और क्षायिक भावों के उत्पन्न होने पर क्षायोपशमिक भावों का अभाव हो जाता है । उन दोनों का साहचर्य नहीं रहता है । सिद्धान्त में अवधिज्ञान और अवधिदर्शन का भेद विवक्षा से वर्णन कर अवधिदर्शन में पहले से लेकर बारहवें पर्यन्त बारह गुणस्थान माने हैं अर्थात् अवधिज्ञानी की तरह विभंगज्ञानी को भी अवधिदर्शन माना है । तत् सम्बन्धी आगम पाठ का सारांश इस प्रकार है___ हे भगवन् ! अवधिदर्शन रूप अनाकार उपयोग वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं उनमें कोई तीन ज्ञान वाले और कोई चार ज्ञान वाले हैं। जो अज्ञानी हैं वे मतिअज्ञानी, श्र त-अज्ञानी और विभंगज्ञानी समझना चाहिए (भगवती ८/२)। सिद्धान्त के उक्त कथन का आशय यह है कि विभंगज्ञान और अवधिदर्शन दोनों में भेद है, अभेद नहीं है। इसी कारण विभंगज्ञानी में अवधिदर्शन माना जाता है । सिद्धान्त के मतानुसार पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में विभंगज्ञान सम्भव है, दूसरे आदि में नहीं। इसलिए दूसरे आदि ग्यारह गुणस्थानों में अवधिज्ञान के साथ और पहले गुणस्थान में विभंगज्ञान के साथ अवधिदर्शन का साहचर्य मानकर पहले से बारह गुणस्थान मानना चाहिए। क्योंकि अवधिज्ञानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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