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पंचसंग्रह (१)
इस तरह कुल मिलाकर छह उपयोग होते हैं । ये दोनों गुणस्थान सम्यक्त्वसहचारी हैं, अतः मिथ्यात्व न होने से मिथ्यात्वनिमित्तक तीन अज्ञान तथा सर्वविरति न होने से मनपर्यायज्ञान और घातिकम का अभाव न होने से केवलद्विक - केवलज्ञान, केवलदर्शन यह छह उपयोग संभव नहीं हैं। जिससे शेष रहे मतिज्ञान आदि छह उपयोग होते हैं ।
'मिस्संमि' अर्थात् मिश्रगुणस्थान में भी यही पूर्वोक्त छह उपयोग होते हैं, यानी तीन ज्ञान और तीन दर्शन उपयोग होते हैं । लेकिन इतनी विशेषता है कि वे 'वामिस्सं - मिश्रित होते हैं, यानी अज्ञानमिश्रित होते हैं । इसका कारण यह है मिश्रगुणस्थान में सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनों के अंश होते हैं । उनमें से जब किसी समय सम्यक्त्वांश का बाहुल्य होता है, उस समय सम्यक्त्व की अधिकता है और यदि मिथ्यात्वांश की अधिकता हो तो मिथ्यात्व अधिक रहता है और यदि किसी समय दोनों अंशों की समानता हो तो सम्यक्त्व और मिथ्यात्व अंश समान रहता है । इसीलिये जब सम्यक्त्व अंश अधिक होता है तब ज्ञान का अंश अधिक और अज्ञान का अंश अल्प होता है तथा जब मिथ्यात्वांश का बाहुल्य हो तब अज्ञानांश अधिक और ज्ञान का अंश अल्प होता है, किन्तु दोनों अंशों के समान होने पर ज्ञान और अज्ञान दोनों समप्रमाण में होते हैं । इसी कारण मिश्रगुणस्थान में अज्ञानमिश्रित तीन ज्ञान और तीन दर्शन इस प्रकार छह उपयोग समझना चाहिए - 'मिस्संमि वामिस्सं' । .
मिश्र गुणस्थान में अवधिदर्शन मानने का कथन सिद्धान्त की अपेक्षा समझना चाहिए । कर्मसिद्धान्तवादियों में कुछ आचार्य अवधिदर्शन नहीं मानते हैं ।
इस प्रकार से प्रथम पांच गुणस्थानों में उपयोगों का कथन करने के पश्चात् अब शेष गुणस्थानों में उपयोगों का निरूपण करते हैं ।
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