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________________ योगोपयोग मार्गणा अधिकार : गाथा १६-२० १५७ से किसी भी योग का सद्भाव कैसे माना जा सकता है ? इसलिए चौदहवें गुणस्थान में कोई भी योग नहीं होता है, वह तो योगातीत अवस्था है- 'अज्जोगो अज्जोगी' । लेकिन सयोगिकेवलीगुणस्थान में - 'सत्त सजोगंमि होंति' - सात योग होते हैं । जिनके नाम हैं- सत्यमनोयोग, असत्यामृषामनोयोग, सत्यवचनयोग, असत्यामृषावचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिक मिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग - 'दो दो मणवइ जोगा उरालदुगं सकम्मइगं' । इनमें से औदारिकमिश्र केवलिसमुद्घात के दूसरे, छठे और सातवें समय में तथा कार्मण तीसरे, चौथे और पांचवें समय में होते हैं । शेष रहे पांच योगों में से औदारिककाययोग विहार आदि की प्रवृत्ति के समय में, वचनयोगद्वय देशनादि के समय तथा मनोयोगद्वय मनपर्यायज्ञानी अथवा अनुत्तर देवों के मन द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देते समय होते हैं । इस प्रकार गुणस्थान में योगों का निर्देश जानना चाहिए ।" अब योगों की तरह गुणस्थानों में उपयोग का विवेचन करते हैं । गुणस्थानों में उपयोग अचक्खुचक्खुदंसणमन्नाणतिगं च मिच्छसासाणे | विरयाविरए सम्मे नाणतिगं दंसणतिगं च ॥ १६ ॥ मिस्संमि वामिस्सं मणनाणजुयं पमत्तपुत्राणं । केवलियनाणदंसण उवओगा अजोगिजोगीसु ||२०|| शब्दार्थ - अचक्खुचक्खुदंसणं अचक्षु चक्षु दर्शन, अन्नाणतिगं - अज्ञानत्रिक, च- और, मिच्छ― मिथ्यात्व, सासाने -- सासादन में, विरयाविरए १ दिगम्बर साहित्य में वर्णित गुणस्थानों में योग - निर्देश को परिशिष्ट में देखिये | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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