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________________ १२० पंचसंग्रह (१) होने से अनाहारकमार्गणा में नहीं होते। नाहारक दशा विग्रहगति तथा केवलीसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में अथवा मोक्ष में होती है। अतः इन दोनों में पृथक्-पृथक् रूप से उपयोगों का विचार किया जाये तो विग्रहगति में आठ उपयोग होते हैं-भावी तीर्थंकर आदि सम्यक्त्वी की अपेक्षा तीन ज्ञान, मिथ्यात्वी की अपेक्षा तीन अज्ञान तथा सम्यक्त्वी, मिथ्यात्वी दोनों की अपेक्षा अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन तथा केवलीसमुद्घात और मोक्ष में केवलज्ञान और केवलदर्शन यह दो उपयोग होते हैं। इस प्रकार विग्रहगति सम्बन्धी आठ और केवलीसमुद्घात व मोक्ष में पाये जाने वाले दो उपयोगों को मिलाने से अनाहारकमार्गणा में दस उपयोग होते हैं। देशविरतिमार्गणा में सम्यक्त्वनिमित्तक आदि के तीन दर्शनचक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और आदि के तीन ज्ञान-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान सब मिलाकर छह उपयोग होते हैं तथा तीन अज्ञान और मनपर्यायज्ञान तथा केवलद्विक यह छह उपयोग नहीं होते हैं। इन छह उपयोगों के न होने का कारण यह है कि देशविरति में मिथ्यात्व का उदय नहीं होने से मिथ्यात्वसहभावी अज्ञानत्रिक तथा एकदेश तथा आंशिक संयम का आचरण होने से सर्वविरतिसापेक्ष मनपर्यायज्ञान और केवल द्विक यह तीनों उपयोग नहीं होते हैं । इसी कारण देशविरति में आदि के तीन ज्ञान और तीन दर्शन यह छह उपयोग माने जाते हैं । अवधिद्विक को ग्रहण करने का कारण यह है कि श्रावकों में अवधि उपयोग पाये जाने का वर्णन आगमों में आया है। मिश्रसम्यक्त्वमार्गणा में भी देशविरति की तरह दर्शनत्रिक Jain Education International For Private & Personal Use Only Forry www.jainelibrary.org |
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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