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________________ पंचसंग्रह (१) लेना, विरत होना, श्रद्धा और ज्ञानपूर्वक सर्वथा पापव्यापार का त्याग करना संयम अथवा चारित्र कहलाता है। उसके पांच भेद हैं१. सामायिक, २. छेदोपस्थापना, ३. परिहारविशुद्धि, ४. सूक्ष्मसंपराय ५. यथाख्यात । संयम के ग्रहण से उसके प्रतिपक्षभूत और आंशिक का भी ग्रहण करना चाहिये । अतः १. असंयम और २. देशसंयम का ग्रहण करने से संयममार्गणा के कुल सात भेद हैं । ६. दर्शनमार्गणा-दर्शन अर्थात् देखना । अथवा सामान्य-विशेषात्मक वस्तु के विषय में जाति, गुण, लिंग, क्रिया की अपेक्षा के बिना सामान्यमात्र जो बोध, उसे दर्शन कहते हैं । उसके चार भेद हैं- १. चक्षुदर्शन, २ अचक्षु दर्शन, ३. अवधिदर्शन, ४. केवलदर्शन । १०. लेश्यामार्गणा-जिस परिणाम के द्वारा आत्मा का कर्मों के साथ श्लेषण-चिपकना होता है, उसे लेश्या कहते हैं। योगान्तर्गत कृष्णादि द्रव्य के योग से हुआ आत्मा का जो शुभाशुभ परिणामविशेष लेश्या कहलाता है। लेश्या के छह भेद हैं- १. कृष्ण, २. नील, ३. कापोत, ४. तेजस्, ५. पद्म और ६ शुक्ल लेश्या । १ सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराययथाख्यातमितिचारित्रम् । -तत्त्वार्थसूत्र ६ | १८ सामायिक आदि यथाख्यात पर्यन्त पांच चारित्रों का सामान्य परिचय परिशिष्ट में दिया है। २ चक्ष रचक्ष रवधि केवलानां । -तत्त्वार्थसूत्र ८/७ ३ लिश्यते श्लिष्यते आत्मा कर्मणा सहानयेति लेश्या । -पंचसंग्रह मलयगिरि टीका पृ. १२ ४ योग के साथ लेश्याओं का अन्वय-व्यतिरेक संबन्ध है । क्योंकि योग के सद्भाव रहने तक लेश्यायें होती हैं और योग के अभाव में अयोगि अवस्था में नहीं होती हैं । इस प्रकार लेश्याओं का अन्वय-व्यक्तिरेक संबन्ध योग के साथ होने से लेश्या योगान्तर्गत द्रव्य हैं, यह समझना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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