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________________ पंचसंग्रह कार्मण और औदारिकमिश्र काययोग पर्याप्त अवस्था में तब होते हैं जब केवली भगवान् केवलिसमुद्घात करते हैं।' केवलिसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मणकाययोग तथा दूसरे, छठे और सातवें समय में औदारिकमिश्रकाययोग होता है। ____ आहारककाययोग के अधिकारी संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त मनुष्य हैं और मनुष्यों में भी चतुर्दशपूर्वधर संयत । जब वे चतुर्दशपूर्वधर संयत मुनि आहारकशरीर-लब्धि का प्रयोग करते हैं, तब आहारकशरीर के बनाने व त्यागने के समय तो आहारकमिश्रकाययोग और शेष समय में-उस शरीर को धारण करने के समय में आहारक. काययोग होता है। वैक्रियमिश्रका ययोग पर्याप्त अवस्था में तब होता है जब कोई वैक्रियलब्धिधारी मुनि आदि वैक्रिय शरीर को बनाते हैं और देव, नारकों के वैक्रिय काययोग होता है। इस प्रकार पर्याप्त विकलत्रिक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन पांच जीवस्थानों में प्राप्त योगों का पृथक-पृथक् रूप से कथन करने के बाद ग्रन्थकार आचार्य ने शेष नौ जीवस्थानों में योग का निर्देश करने के लिए गाथा में जो--'सेसेसु काओगे' अर्थात् काययोग होता है' पद दिया है, उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है १ केवलिसमुद्घात की स्थिति आठ समय प्रमाण है। इनमें केवली भगवान् आत्म-प्रदेशों को सर्वलोकव्यापी करके पुनः शरीरप्रमाण कर लेते हैं। २ मिश्रौदारिक योक्ता सप्तमषष्ठद्वितीयेषु ॥ कार्मणशरीरयोगी चतुर्थके पञ्चमे तृतीये च । -प्रशमरति प्रकरण (उमास्वाति) २७६-२७७ ३ दिगम्बर कार्मग्रन्थिकों ने भी जीवस्थानों में इसी प्रकार से योगों का निर्देश किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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