SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिका प्रकरण इस प्रकार नरकगति में आयु के अबन्ध में एक, बंध में दो और उपरतबंध में दो, कुल मिलाकर पांच भंग होते हैं। नरकगति की आयुबंध सम्बन्धी विशेषता नारक जीवों के उक्त पाँच भंग होने के प्रसंग में इतना विशेष जानना चाहिये कि नारक भवस्वभाव से ही नरकायु और देवायु का बंध नहीं करते हैं। क्योंकि नारक मर कर नरक और देव पर्याय में उत्पन्न नहीं होते हैं, ऐसा नियम है।' आशय यह है कि तिर्यंच और मनुष्य गति के जीव, तो मरकर चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं किन्तु देव और नारक मरकर पुन: देव और नरक गति में उत्पन्न नहीं होते हैं, वे तो केवल तिर्यंच और मनुष्य गति में ही उत्पन्न होते हैं । नरकगति के आयुकर्म के संवेध भंगों का विवरण इस प्रकार है-- भंग काल बंध उदय । सत्ता गुणस्थान क्रम अबंधकाल नरक नरक १, २, ३, ४ बंधकाल तियंच नरक न० ति० १,२ बंधकाल मनुष्य नरक न० म० ४ उप० बंधकाल . नरक न० ति० १, २, ३, ४ ५ उप० बंधकाल नरक न० म० १, २, ३, ४ . देवायु के संवेध भंग-यद्यपि नरकगति के पश्चात तिर्यंचगति के आयुकर्म के संवेध भंगों का कथन करना चाहिये था। लेकिन जिस प्रकार नरकगति में अबन्ध, बन्ध और उपरतबंध की अपेक्षा पाँच भंग व उनके गुणस्थान बतलाये हैं, उसी प्रकार देवगति में भी होते - १ "देवा नारगा वा देवेसु नारगेसु वि न उववज्जति इति” । ततो नारकाणां परभवायुर्बन्धकाले बन्धोत्तरकाले च देवायु:-नारकायुया॑म् विकल्पाभावात् सर्वसंख्यया पंचव विकल्पा भवन्ति । --सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६० www.jainelibrary.org, Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy