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________________ ३० सप्ततिका प्रकरण पहला भंग आयुकर्म के बंधकाल में होता है तथा दूसरा विकल्प आयुकर्म के बंधकाल के अतिरिक्त सर्वदा पाया जाता है ।" चौदह गुणस्थानों के भंगों की संग्राहक गाथायें निम्न हैं एवं विवरण पृष्ठ ३१ की तालिका में दिया गया है । मिस्स अपुव्वा बायर सगबंधा छच्च बंधए सुहमो । उवसंताई एवं अंबंधगोऽजोगि एगेगं ॥ मिच्छासायणअविरय देसपमत्त अपमत्तया चेच । सत्तट्ठ बंधगा इह, उदया, संता या पुण एए ॥। जा सुमोता अट्ठ उ उदए संते य होंति पयडीओ | सत्तट्ठवसंते खीणि सत्त चत्तारि सेसेसु || 2 इस प्रकार मूल प्रकृतियों की अपेक्षा बंध, उदय और सत्ता प्रकृतिस्थानों के संवेध भंगों और उनके स्वामियों का कथन करने के पश्चात् अब उत्तर प्रकृतियों की अपेक्षा बंध, उदय और सत्ता प्रकृतिस्थानों के संवेध भंगों का कथन करते हैं । पहले ज्ञानावरण और अंतराय कर्म के संवेध भंग बतलाते हैं । उत्तर प्रकृतियों के संवेध भांग ज्ञानावरण, अन्तराय कर्म पंच | बंधोदयसंतंसा नाणावरणंतराइए बंधोवरमे वि तहा उवसंता हुति पंचेव || ६ || १. अष्टविधो बंध : अष्टविध उदयः अष्टविधा सत्ता, एष विकल्प आयुबंधकाले, एतेषां ह्यायुर्बन्धयोग्याध्यवसायस्थानसम्भवाद् आयुर्बन्ध उपपद्यते । तथा सप्तविधो बंध : अष्टविध उदयः अष्टविधा सत्ता एष विकल्प आयुर्बन्धकालं मुक्त्वा शेषकालं सर्वदा लभ्यते । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४५ २. रामदेवगण रचित सप्ततिका टिप्पण, सा० ८, ९, १० । ३. तुलना कीजिए बंधोदयकम्मंसा णाणावरणंतरायिए पंच ॥ बंधोपरमेवि तहा उदयंसा होति पंचेव || Jain Education International - गो० कर्मकांड ६३० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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