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परिशिष्ट-२
हाथ-दो वितस्ति के माप को हाथ कहते हैं । हारिद्रवर्ण नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर हल्दी जैसा
पीला हो। हास्य मोहनीय-जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण के
हँसी आती है। हीयमान अवधिज्ञान-अपनी उत्पत्ति के समय अधिक विषय वाला होने पर
भी परिणामों की अशुद्धि के कारण दिनोंदिन क्रमश: अल्प, अल्पतर,
अल्पतम विषयक होने वाला अवधिज्ञान । हुंडसंस्थान नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर के सभी अवयव बेडौल हों,
यथायोग्य प्रमाण युक्त न हों। हुहु-चौरासी लाख हुहु-अंग का एक हुहु होता है। हुहु-अंग-चौरासी लाख अवव की संख्या । हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा-अपने शरीर के पालन के लिए इष्ट में प्रवृत्ति
और अनिष्ट वस्तु से निवृत्ति के लिए उपयोगी सिर्फ वर्तमानकालिक
ज्ञान जिससे होता है, वह हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा है । हेतुविपाकी- पुद्गलादि रूप हेतु के आश्रय से जिस प्रकृति का विपाक--
फलानुभव होता है।
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