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परिशिष्ट-२
के किसी एक प्रदेश में भरण करके पुनः उस प्रदेश के समीपवर्ती दूसरे । प्रदेश में मरण करता है, पुनः उसके निकटवर्ती तीसरे प्रदेश में मरण करता है। इस प्रकार अनन्तर अनन्तर प्रदेश में मरण करते हुए जब समस्त लोकाकाश के प्रदेशों में मरण कर लेता है तब उतने समय को
सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त कहते हैं । सूक्ष्मक्षेत्र सागरोपम-दस कोटाकोटी सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम का एक सूक्ष्मक्षेत्र
सागरोपम होता है। सूक्ष्मद्रव्यपुद्गल परावर्त-जितने समय में समस्त परमाणुओं को औदारिक
आदि सातों वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा रूप से ग्रहण करके
छोड़ देता है। सूक्ष्मभावपुद्गल परावर्त-जितने समय में एक जीव अपने मरण के द्वारा
अनुभाग बंध के कारण भूत कषायस्थानों को क्रम से स्पर्श कर लेता है । सूक्ष्नसंपराय गुणस्थान--जिसमें संपराय अर्थात् लोभ कषाय के सूक्ष्म खंडों का
ही उदय हो। सूक्ष्म राय संयम-क्रोधादि कषायों द्वारा संसार में परिभ्रमण होता है अतः,
उनको संपराय कहते हैं। जिस संयम में संपराय (कषाय का उदय)
सूक्ष्म (अतिस्वल्प) रहता है। सेवार्तसंहनन नामकर्म--जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में मर्कट बंध,
वेठन और कीलन न होकर दो ही हड़ियां आपस में जूडी हों। स्तिबुकसंक्रम-अनुदयवर्ती कर्म प्रकृतियों के दलिकों को सजातीय और तुल्य
स्थितिवाली उदयवर्ती कर्मप्रकृतियों के रूप में बदलकर उनके दलिकों
के साथ भोग लेना। स्तोक-सात श्वासोच्छ्वास काल के समय प्रमाण को स्तोक कहते हैं । स्त्यानद्धि-जिस कर्म के उदय से जाग्रत अवस्था में सोचे हुए कार्य को निद्रा
वस्था में करने की सामर्थ्य प्रकट हो जाए। अथवा जिस निद्रा के उदय से निद्रित अवस्था में विशेष बल प्रगट हो जाए। अथवा जिस निद्रा में दिन में चिन्तित अर्थ और साधन विषयक आकांक्षा का एकत्रीकरण
हो जाये। स्त्रीवेद--जिस कर्म के उदय से पुरुष के साथ रमण करने की इच्छा हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org