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पारिभाषिक शब्द-कोष
समास-अधिक, समुदाय या संग्रह । समुद्घात-मूल शरीर को छोड़े बिना ही आत्मा के प्रदेशों का बाहर निकलना। सयोगिकेवली-वे जीव जिन्होंने चार घातिकर्मों का क्षय करके केवलज्ञान
और दर्शन प्राप्त कर लिया है जो पदार्थ के जानने देखने में इन्द्रिय आलोक आदि की अपेक्षा नहीं रखते और योग (आत्मवीर्य शक्ति उत्साह
पराक्रम) से सहित हैं। सयोगिकेवली गुणस्थान-सयोगिकेवली के स्वरूप विशेष को कहते हैं । सयोगिकेवली यथाख्यातसंयम--सयोगिकेवली का यथाख्यातसंयम । सम्यक् श्रत- सम्यग्दृष्टि जीवों का श्रुत । सम्यक्त्व-छह द्रव्य, पंच अस्तिकाय, नव तत्त्वों का जिनेन्द्र देव ने जैसा कथन . किया है, उसी प्रकार से उनका श्रद्धान करना अथवा तत्त्वार्थ श्रद्धान् ।
मोक्ष के अविरोधी आत्मा के परिणाम को सम्यक्त्व कहते हैं । सम्यक्त्वमोहनीय---जिसका उदय तात्त्विक रुचि का निमित्त होकर भी औप
शमिक या क्षायिक भाव वाली तत्त्व रुवि का प्रतिबंध करता है ।
सम्यक्त्व का घात करने में असमर्थ मिथ्यात्व के शुद्ध दलिकों को
सम्यक्त्व मोहनीय कहते हैं। सविपाक निर्जरा- यथाक्रम से परिपाक काल को प्राप्त और अनुभव के लिए
उदयावलि के स्रोत में प्रविष्ट हए शुभाशुभ कर्मों का फल देकर निवृत्त
होना। सागरोपम-दस कोड़ाकोड़ी पल्योपम का एक सागरोपम होता है । सात गौरव- शरीर के स्वास्थ्य, सौन्दर्य आदि का अभिमान करना । सातावेदनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से आत्मा को इन्द्रिय-विषय सम्बन्धी
सुख का अनुभव हो। सातिचार छेदोपस्थापनीय संयम-जो किसी कारण से मूल गुणों-महाव्रतों के
भंग हो जाने पर पुनः ग्रहण किया जाता है । सादि-अनन्त --- जो आदि सहित होकर भी अनन्त हो । सादि बंध-वह बंध जो रुककर पुनः होने लगता है । सादिश्रुत-जिस श्रु त ज्ञान की आदि (आरम्भ शुरूआत) हो । सादिसान्त--जो बंध या उदय बीच में रुककर पुन: प्रारम्भ होता है और
कालान्तर में पुनः व्युच्छिन्न हो जाता है ।
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