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________________ ५४ पारिभाषिक शब्द-कोष लोमाहार-स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किये जाने वाला आहार । लोहित वर्ण नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर सिन्दूर जैसा लाल हो। वर्ग-समान दो संख्याओं का आपस में गुणा करने पर प्राप्त राशि । सजातीय प्रकृतियों के समुदाय । अविभागी प्रतिच्छेदों का समूह । वर्गणा-समान जातीय पुद्गलों का समूह । वचनयोग-जीव के उस व्यापार को कहते हैं जो औदारिक, वैक्रिय या आहारक शरीर की क्रिया द्वारा संचय किये हुए भाषा द्रव्य की सहायता से होता है । अथवा भाषा परिणामरूपता को प्राप्त हुए पुद्गल को वचन कहते हैं और उस सहकारी कारणभूत वचन के द्वारा होने वाले योग को वचनयोग कहते हैं । अथवा वचन को विजय करने वाले योग को या भाषावर्गणा सम्बन्धी पुद्गल स्कन्धों के अवलंबन से जो जीव प्रदेशों में संकोच-विकोच होता है, उसे वचनयोग कहते हैं। वत्रऋषभनाराचसंहनन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना विशेष में वज्र-कीली, ऋषभ-वेष्ठन, पट्टी और नाराच-दोनों ओर मर्कट बंध हो, अर्थात् दोनों ओर से मर्कट बंध से बंधी हुई दो हड्डियों पर तीसरी हड्डी का वेठन हो और उन तीनों हड्डियों को भेदने वाली हड्डी की कीली लगी हुई हो। वर्णनामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर में कृष्ण गौर आदि रंग होते हैं। वर्षमान अवधिज्ञान-अपनी उत्पत्ति के समय अल्प विषय वाला होने पर भी परिणाम-विशुद्धि के साथ उत्तरोत्तर अधिकाधिक विषय होने वाला । बनस्पति काय-जिन जीवों का शरीर वनस्पति मय होता है । वस्तु श्रुत-अनेक प्राभृतों का एक वस्तु अधिकार होता है । एक वस्तु अधि __ कार के ज्ञान को वस्तुश्रत कहते हैं। वस्तु समास श्रुत-दो-चार वस्तु अधिकारों का ज्ञान । वामन संस्थान नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर वामन (बोना) हो। वायुकाय-वायु से बनने वाला वायवीय शरीर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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