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सप्ततिका प्रकरण अतएव अब अगली गाथा में अयोगि अवस्था में उदययोग्य नामकर्म की नौ प्रकृतियों के नाम बतलाते हैं।
मणुयगइ जाइ तस बायरं च पज्जत्तसुभगमाइज्ज । जसकित्ती तित्थयरं नामस्स हवंति नव एया ॥६७॥
शब्दार्थ-मणुयगइ-मनुष्यगति, जाइ-पंचेन्द्रिय जाति, तसबायरं-त्रस बादर, च-और, पज्जत्त-पर्याप्त, सुभगं--- सुभग, आइज्जं-आदेय, जसकित्ती-यशःकीर्ति, तित्थयरं-तीर्थकर, नामस्स-नामकर्म की, हवंति-हैं, नव-नौ, एया-ये।
__गाथार्थ-मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यश:कीति और तीर्थंकर ये नामकर्म नौ प्रकृतियां हैं।
विशेषार्थ-पूर्व गाथा में संकेत किया गया था कि नामकर्म की नौ प्रकृतियों का उदय अयोगिकेवली गुणस्थान के अंतिम समय तक रहता है किन्तु उनके नाम का निर्देश नहीं किया था। अतः इस गाथा में नामकर्म की उक्त नौ प्रकृतियों के नाम इस प्रकार बतलाये हैं-१. मनुष्यगति, २. पंचेन्द्रिय जाति, ३. बस, ४. बादर, ५. पर्याप्त, ६. सुभग, ७. आदेय, ८. यशःकीर्ति, ६. तीर्थंकर ।
नामकर्म की नौ प्रकृतियों को बतलाने के बाद अब आगे की गाथा में मनुष्यानुपूर्वी के उदय को लेकर पाये जाने वाले मतान्तर का कथन करते हैं।
तच्चाणुपुग्विसहिया तेरस भवसिद्धियस्स चरिमम्मि । संतंसगमुक्कोसं जहन्नयं बारस हवंति ॥६॥
___ शब्दार्थ-तच्चाणुपुटिवसहिया-उस (मनुष्य की) आनुपूर्वी सहित, तेरस-तेरह, भवसिद्धियस्स-तद्भव मोक्षगामी जीव के,
चरिमम्मि- चरम समय में, संतसगं-कर्म प्रकृतियों की सत्ता, Jain Education International For Private & Personal Use Only
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