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________________ ३५२ बंधस्थान ३० प्रकृतिक भंग ४६१६ उदयस्थान २१ २५ २७ २८ २६ भंग १ सप्ततिका प्रकरण For Private & Personal Use Only सत्तास्थान २,८६,८८ २, ८६, ८८ ६२, ८६, ८८ २, ८६, ८८ २, ८६, ८८ तिर्यंचगति में संवेध - छह बंधस्थानों में से २३ प्रकृतिक बंधस्थान में यद्यपि पूर्वोक्त २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये नौ ही उदयस्थान होते हैं। लेकिन इनमें से प्रारम्भ के २१, २४, २५ और २६ प्रकृतिक, इन चार उदयस्थानों में से प्रत्येक में ६२,८८,८६,८० और ७८ प्रकृतिक, ये पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं और अन्त के पांच उदयस्थानों में से प्रत्येक में ७८ प्रकृतिक के बिना चार-चार सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि २७ प्रकृतिक आदि उदयस्थानों में नियम से मनुष्यद्विक की सत्ता सम्भव है । अत: इनमें ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं पाया जाता है । इसी प्रकार २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक बंधस्थान वाले जीवों के बारे में भी जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यगतिप्रायोग्य २६ प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव के सब उदयस्थानों में ७८ के बिना चार-चार सत्तास्थान ही सम्भव हैं। क्योंकि मनुष्यद्वि का बंध करने वाले के ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान सम्भव नहीं है । Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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