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___ षष्ठ कर्मग्रन्थ
३४५ (११-१२) उपशांतमोह क्षीणमोह गुणस्थान
उपशान्तमोह आदि गुणस्थानों में बंधस्थान नहीं है, किन्तु उदयस्थान और सत्तास्थान ही हैं। अतएव उपशान्तमोह गुणस्थान में-'एग
चऊ'-अर्थात् एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान है और ६३, ६२, ८६ और .८८ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान हैं।
क्षीणमोह गुणस्थान में भी एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान और ८०, ७६, ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान होते हैं - 'एग चऊ। यहाँ उदयस्थान में इतनी विशेषता है कि यदि सामान्य जीव क्षपकश्रेणि पर आरोहण करता है तो उसके मतान्तर से जो ७२ भंग बतलाये हैं वे प्राप्त न होकर २४ भंग ही प्राप्त होते हैं। क्योंकि उसके एक वज्रऋषभनाराच संहनन का ही उदय होता है । यही बात क्षपकश्रेणि के पिछले अन्य गुणस्थानों में भी जानना चाहिये तथा यदि तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाला होता है तो उसके प्रशस्त प्रकृतियों का ही सर्वत्र उदय रहता है, इसीलिये एक भंग बतलाया है।
इसी प्रकार सत्तास्थानों में भी कुछ विशेषता है। यदि तीर्थकर प्रकृति की सत्ता वाला जीव होता है तो उसके ८० और ७६ की सत्ता रहती है और दूसरा (तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता रहित) होता है तो उसके ७६ और ७५ प्रकृतियों की सत्ता रहती है। यही बात यथासम्भव सर्वत्र जानना चाहिये ।
१ ......"अत्र भंगाश्चतुर्विशतिरेव वर्षभनाराचसंहननयुक्तस्यैव क्षपकश्रेण्यारम्मसम्भवात् ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २३४ २ एकोनाशीति-पंचसप्तती अतीर्थकर सत्कर्मणो वेदितव्ये । अशीति-षट्सप्तती तु तीर्थकरसत्कर्मणः ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ. २३४
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