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षष्ठ कर्मग्रन्थ
देशविरत
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत
अपूर्वकरण
अनिवृत्तिकरण
सूक्ष्मसंपराय
m
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१
१
१
८ X२४
८x२४
८x२४
४x२४
१२
१ पंचसंग्रह सप्ततिका गा० ११७
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४
१
५७६
५७६
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६६
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तिगहीणा तेवन्ना सया य उदयाण होंति लेसाणं । अडतीस सहस्साई पयाण सय दो य सगतीसा ॥ १
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४
१
५२६७
अब लेश्याओं की अपेक्षा पदवृन्द बतलाते हैं :
मिथ्यात्व के ६८, सासादन के ३२, मिश्र के ३२ और अविरत सम्यग्दृष्टि के ६० पदों का जोड़ ६८ +३२+३२+६०=१६२ हुआ । इन्हें यहाँ संभव ६ लेश्याओं से गुणित कर देने पर ११५२ होते हैं । सो देशविरत के ५२, प्रमत्तविरत के ४४ और अप्रमत्तविरत के ४४ पदों का जोड़ १४० हुआ । इन्हें इन तीन गुणस्थानों में संभव ३ लेश्याओं से गुणित कर देने पर ४२० होते हैं तथा अपूर्वकरण में पद २० हैं, किन्तु यहाँ एक ही लेश्या है अतः इसका प्रमाण २० हुआ । इन सबका जोड़ ११५२+४२०+२०= १५६२ हुआ । इन १५६२ को भंगों की अपेक्षा २४ से गुणित कर देने पर आठ गुणस्थानों के कुल पदवृन्द ३८२०८ होते हैं । अनन्तर इनमें दो प्रकृतिक और एक प्रकृतिक पदवृन्द २६ और मिला देने पर कुल पदवृन्द ३८२३७ होते हैं । कहा भी है
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