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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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प्रमत्तसंयत गुणस्थान में योग १३ और पद ४४ हैं किन्तु आहारकद्विक में स्त्रीवेद का उदय नहीं होता है, इसलिये १९ योगों की अपेक्षा तो ११ को ४४ से गुणित करके २४ से गुणित करने से ११x४४ = ४८४x२४ = ११६१६ हुए और आहारकद्विक की अपेक्षा २ से ४४ को गुणित करके १६ से गुणित करें तो २x४४ = ८८ × १६=१४०८ हुए । तब ११६१६ + १४०८ को जोड़ने पर कुल १३०२४ पदवृन्द प्रमत्तसंयत गुणस्थान में प्राप्त होते हैं ।
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अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में भी योग ११ और पद ४४ हैं, किन्तु आहारक काययोग में स्त्रीवेद का उदय नहीं होता है । इसलिये १० योगों की अपेक्षा १० से ४४ को गुणित करके २४ से गुणित करें और आहारक काययोग की अपेक्षा ४४ से १६ को गुणित करें। इस प्रकार करने पर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में कुल पदवृन्द ११२६४ होते हैं । अपूर्वकरण में योग और पद २० होते हैं । अतः २० को ६ से गुणित करके २४ से गुणित करने पर यहाँ कुल पदवृन्द ४३२० प्राप्त होते हैं । अनिवृत्तिबादर गुणस्थान में योग है और भङ्ग २८ हैं । यहाँ योग पद नहीं है अतः पद न कहकर भङ्ग कहे हैं। सो इन ६ को २८ से गुणित कर देने पर अनिवृत्तिबादर में २५२ पदवृन्द होते हैं तथा सूक्ष्मसंपराय में योग है, और भङ्ग १ है, अतः ६ से १ को गुणित करने पर भङ्ग होते हैं ।
इस प्रकार पहले से लेकर दसवें गुणस्थान तक के पदवृन्दों को जोड़ देने पर सब पदवृन्दों की कुल संख्या ६५७१७ होती है। कहा भी हैसत्तरसा सत्त सया पणन उइसहस्स पयसंखा । "
अर्थात् योगों की अपेक्षा मोहनीयकर्म के सब पदवृन्द पंचानवे हजार सातसौ सत्रह ६५७१७ होते हैं । २
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पंचसंग्रह सप्ततिका गा० १२०
२ गो० कर्मकांड गा० ४६८ और ५०० में योगों की अपेक्षा उदयस्थान १२६५३ और पदवृन्द ८८६४५ बतलाये हैं ।
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