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सप्ततिका प्रकरण ___ योगों की अपेक्षा गुणस्थानों में उदयविकल्पों का विचार करने के अनन्तर अब क्रम प्राप्त पदवृन्दों का विचार करने के लिये अन्तर्भाष्य गाथा उद्धृत करते हैं
अट्ठी बत्तीसं बत्तीसं सट्टिमेव बावन्ना ।
चोयालं चोयालं वीसा वि य मिच्छमाईसु॥ अर्थात् – मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में क्रम से ६८, ३२, ३२, ६०, ५२, ४४, ४४ और २० उदयपद होते हैं।
यहाँ उदयपद से उदयस्थानों की प्रकृतियां ली गई हैं। जैसे कि मिथ्यात्व गुणस्थान में १०, ६, ८ और ७ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान हैं और इनमें से १० प्रकृतिक उदयस्थान एक है अत: उसकी दस प्रकृतियाँ हुईं। ६ प्रकृतिक उदयस्थान तीन प्रकृतियों के विकल्प से बनने के कारण तीन हैं अतः उसकी २७ प्रकृतियां हुईं। आठ प्रकृतिक उदयस्थान भी तीन प्रकृतियों के विकल्प से बनता है अत: उसकी २४ प्रकृतियां हुईं और सात प्रकृतिक उदयस्थान एक है अत: उसकी ७ प्रकृतियाँ हुईं। इस प्रकार मिथ्यात्व में चारों उदयस्थानों की १०+ २७+२४+७=६८ प्रकृतियां होती हैं । सासादन आदि गुणस्थानों में जो ३२ आदि उदयपद बतलाये हैं, उनको भी इसी प्रकार समझना चाहिये। ___ अब यदि इन आठ गुणस्थानों के सब उदयपद (६८ से लेकर २० तक) जोड़ दिये जायें तो इनका कुल प्रमाण ३५२ होता है । किन्तु इनमें से प्रत्येक उदयपद में चौबीस-चौबीस भङ्ग होते हैं, अत: ३५२ को २४ से गुणित करने पर ८४४८ प्राप्त होते हैं। ये पदवन्द अपूर्वकरण गुणस्थान तक के जानना चाहिये। इनमें अनिवृत्तिकरण के २८ और सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान का १, कुल २६ भङ्ग मिला देने पर ८४४८+२६ =८४७७ प्राप्त होते हैं । ये मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक के सामान्य से पदवृन्द हुए।
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