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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ २७६ संकेत दिया है सो उसका तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार पहले सामान्य से मोहनीयकर्म के उदयस्थानों का कथन करते समय भंग बतला आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी उनका प्रमाण समझ लेना चाहिये । स्पष्टता के लिये पुन: यहाँ भी उदयस्थानों का निर्देश करते समय भंगों का संकेत दिया है । लेकिन इस निर्देश में पूर्वोल्लेख से किसी प्रकार का अंतर नहीं समझना चाहिये । ra free आदि गुणस्थानों की अपेक्षा दस से लेकर एक पर्यन्त उदयस्थानों के भंगों की संख्या बतलाते हैं एक्क छडेक्कारेकारसेव एक्कारसेव नव तिन्नि । एए चउवीसगया बार दुगे पंच एक्कम्मि ॥४६॥ शब्दार्थ – एक्क — एक, छडेक्कार – छह, ग्यारह, इक्कारसेव - ग्यारह, नव-नौ, तिन्नि-तीन, एए - यह, चवीस गयाचौबीसी मंग, बार - बारह भंग, दुगे - दो के उदय में, पंच-पाँच, एक्कम्मि – एक के उदय में । गाथार्थ - दो और एक उदयस्थानों को छोड़कर दस आदि उदयस्थानों में अनुक्रम से एक, छह, ग्यारह, ग्यारह नौ और तीन चौबीसी भंग होते हैं तथा दो के उदय में बारह और एक के उदय में पाँच भंग होते हैं । विशेषार्थ - मोहनीयकर्म के नौ उदयस्थानों को पहले बतलाया जा चुका है । इस गाथा में प्रकृति संख्या के उदयस्थान का उल्लेख न करके उस स्थान के भंगों की संख्या को बतलाया है। वह अनुक्रम से इस प्रकार समझना चाहिये कि दस प्रकृतिक उदयस्थान में भंगों की एक चौबीसी, नौ प्रकृतिक उदयस्थान में भंगों की छह चौबीसी, आठ प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह चौबीसी, सात प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह चौबीसी, छह प्रकृतिक उदयस्थान में ग्यारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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