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सप्ततिका प्रकरण
__ इस प्रकार से जीवस्थानों में आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियों के बंध, उदय व सत्ता स्थान तथा उनके भंगों का कथन करने के बाद अब गुणस्थानों में भंगों का कथन करते हैं। गुणस्थानों में संवेध भंग
सर्वप्रथम गुणस्थानों में ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के बंधादि स्थानों का कथन करते हैंनाणंतराय तिविहमवि दससु दो होति दोसु ठाणेसुं ।
शब्दार्थ-नाणंतराय-ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म, तिविहमवि-तीन प्रकार से (बंध, उदय और सत्ता की अपेक्षा), दससुआदि के दस गुणस्थानों में, दो-दो (उदय और सत्ता), होतिहोता है, दोसु-दो (उपशांतमोह और क्षीणमोह में), ठाणेसुंगुणस्थानों में।
गाथार्थ-प्रारम्भ के दस गुणस्थानों में ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म बन्ध, उदय और सत्ता की अपेक्षा तीन प्रकार का है और दो गुणस्थानों (उपशांतमोह, क्षीणमोह) में उदय और सत्ता की अपेक्षा दो प्रकार का है। विशेषार्थ-पूर्व में चौदह जीवस्थानों में आठ कर्मों के बंध, उदय और सत्ता स्थान तथा उनके संवेध भंगों का कथन किया गया। अब गुणस्थानों में उनका कथन करते हैं। ... ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के बारे में यह नियम है कि ज्ञानावरण की पाँचों और अन्तराय की पांचों प्रकृतियों का बन्धविच्छेद दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान के अन्त में तथा उदय और सत्ता का विच्छेद बारहवेंक्षीणमोह गुणस्थान के अन्त में होता है । अतएव इससे यह सिद्ध हो जाता है कि पहले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान तक दस गुणस्थानों में ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के पाँच
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