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षष्ठ कर्मग्रन्थ
२५१
बंधस्थानों के भंगों को बतलाने के बाद अब उदयस्थानों के भंगों को बतलाते हैं।
सूक्ष्म एके० अप० सूक्ष्म एके० पर्याप्त | बादर एके० अप० | बादर एके० पर्याप्त
२१. २४ ।
द्वीन्द्रिय अपर्याप्त
द्वीन्द्रिय पर्याप्त
त्रीन्द्रिय अपर्याप्त | त्रीन्द्रिय पर्याप्त
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