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सप्ततिका प्रकरण चाहिये। २५ प्रकृतिक बंधस्थान में २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये आठ उदयस्थान बतलाये हैं सो इनमें से २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों में तो पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं तथा २५ और २७ प्रकृतिक उदयस्थान देवों के ही होते हैं, अतः इनमें ६२ और १८ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। शेष रहे चार उदयस्थानों में से प्रत्येक में ७८ प्रकृतिक के बिना चार-चार सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार यहाँ कुल ३० सत्तास्थान होते हैं। २६ प्रकृतिक बंधस्थान में भी इसी प्रकार ३० सत्तास्थान होते हैं।
२८ प्रकृतिक बंधस्थान में आठ उदयस्थान होते हैं। इनमें से २१ २५, २६, २७, २८ और २६ प्रकृतिक इन छह उदयस्थानों में ६२ और ८८ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। ३० प्रकृतिक उदयस्थान में ६२, ८८, ८६ और ८० प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान होते हैं तथा ३१ प्रकृतिक उदयस्थान में ६२, ८८ और ८६ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं । इस प्रकार यहां कुल १६ सत्तास्थान होते हैं।
२६ प्रकृतिक बंधस्थान में ३० प्रकृतिक सत्तास्थान तो २५ प्रकृतियों का बंध करने वाले के समान जानना किन्तु यहाँ कुछ विशेषता है कि जब अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्य देवगति के योग्य २६ प्रकृतियों का बंध करता है तब उसके २१, २६, २८, २६ और ३० प्रकृतिक ये पाँच उदयस्थान तथा प्रत्येक उदयस्थान में ६३ और ८६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं जिनका जोड़ १० हुआ ।
इसी प्रकार विक्रिया करने वाले संयत और संयतासंयत जीवों के भी २६ प्रकृतिक बंधस्थान के समय २५ और २७ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान तथा प्रत्येक उदयस्थान में ६३ और ८९ प्रकृतिक ये दो उदयस्थान होते हैं। जिनका जोड़ ४ होता है अथवा आहारक संयत के भी इन दो उदयस्थानों में ९३ प्रकृतियों की सत्ता होती है और तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि को अपेक्षा ८६ की सत्ता होती है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only
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