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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ २४३ उदयस्थानों की अपेक्षा विचार करने पर और २०, ६ और ८ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान केवली सम्बन्धी हैं और २४ प्रकृतिक उदयस्थान एकेन्द्रियों को होता है अत: इस जीवस्थान में २०, २४, ६ और ८ प्रकृतिक, इन चार उदयस्थानों को छोड़कर शेष यह जीवस्थान बारहवें गुणस्थान तक ही पाया जाता है । २१, २५, २६, २७, २८, २६ ३०, ३१ प्रकृतिक ये आठ उदयस्थान पाये जाते हैं। इन आठ उदयस्थानों के कुल भंग ७६७१ होते हैं। क्योंकि १२ उदयस्थानों के कुल भंग ७७६१ हैं सो उनमें से १२० भंग कम हो जाते हैं, क्योंकि उन भंगों का संबंध संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव से नहीं है। नामकर्म के सत्तास्थान १२ हैं, उनमें से है और ८ प्रकृतिक सत्तास्थान केवली के पाये जाते हैं, अत: वे दोनों संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवस्थान में संभव नहीं होने से उनके अतिरिक्त ६३, ६२, ८६, ८८, ८६, ८०, ७६ ७८, ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये दस सत्तास्थान पाये जाते हैं । २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों के क्रमशः ८ और २८८ भंगों में से तो प्रत्येक भंग में ९२, ८८, ८६, ८० और ७६ प्रकृतिक, ये पाँच-पांच सत्तास्थान ही पाये जाते हैं। १ गो० कर्मकांड गाथा ६०६ में नामकर्म के ६३, ६२, ६१, ६०, ८८, ८४, ८२, ८०, ७६, ७८, ७७, १० और ६ प्रकृतिक ये १३ सत्तास्थान बतलाये हैं । इनमें से संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवस्थान में १० और ६ प्रकृतिक सत्तास्थान को छोड़कर शेष ११ सत्तास्थान बतलाये हैं-दसणवपरिहीणसव्वयं सत्तं ॥७०६॥ श्वेताम्बर और दिगम्बर कर्मग्रन्थों में नामकर्म के निम्नलिखित सत्तास्थान समान प्रकृतिक हैं, ६३, ६२, ८८, ८०, ७६, ७८ और ६ प्रकृतिक और बाकी के सत्तास्थानों में प्रकृतियों की संख्या में भिन्नता है । श्वेताम्बर कर्मग्रन्थों में ८६, ८६, ७६, ७५ प्रकृतिक तथा दिगम्बर साहित्य में ६१, ६०, ८४, ८२, ७७, १० प्रकृतिक सत्तास्थान बतलाये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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