SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ २२१ चौदह जीवस्थानों में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, आयु, गोत्र और अंतराय इन छह कर्मों के भंगों का विवरण इस प्रकार है जीवस्थान अंतराय क्रम १ एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त २ एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त ३ एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त ४ एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त ५ द्वीन्द्रिय अपर्याप्त ६ द्वीन्द्रिय पर्याप्त त्रीन्द्रिय अपर्याप्त ८ त्रीन्द्रिय पर्याप्त चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त १० | चतुरिन्द्रिय पर्याप्त ११ असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त १२ असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त १३ संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त १४ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त ७ m ज्ञाना- दर्शना। वरण वरण १ १ १ १ १ १ ov १ १ २ 2 २ २ r २ २ २ वेदनीय ܡ ܡ ܡ ན Falle X में ५ X عر ५ ५ ५ X १ २ १ २ २ १ २ २ ११ ५ २५ ५ ० w गोत्र m m m m m m m ३ m १ १ १ १ १ १ ३ छह कर्मों के जीवस्थानों में भंगों को बतलाने के बाद अब 'मोहं परं वोच्छं' -- मोहनीय कर्म के भंगों को बतलाते हैं । अट्टसु पंचसु एगे एग दुगं दस य मोहबंधगए । तिग चउ नव उदयगए तिग तिग पन्नरस संतम्मि ||३६|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy