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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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सामान्य केवली के वचनयोग के निरोध करने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान बताया गया है, उसमें से श्वासोच्छ वास का निरोध करने पर उच्छ वास प्रकृति के कम हो जाने से २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह सामान्य केवली के होता है अतः यहाँ सत्तास्थान ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये दो होते हैं।
तीर्थकर केवली के अयोगिकेवली गुणस्थान में प्रकृतिक उदयस्थान होता है और उपान्त्य समय तक ८० और ७६ तथा अन्तिम समय में प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं। किन्तु सामान्य केवली की अपेक्षा अयोगि गुणस्थान में ८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है तथा उपान्त्य समय तक ७६ व ७५ और अन्तिम समय में ८ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं।
इस प्रकार से बंध के अभाव में दस उदयस्थान और दस सत्तास्थान होने का कथन समझना चाहिए। __ नामकर्म के बंध, उदय और सत्तास्थानों के संवेध भंगों का विवरण इस प्रकार है--
गुण स्थान भंग
उदयस्थान
१२
उदय भंग
सत्तास्थान संवेधभंग
स्थान
१२
६२,८८,८६,८०,७८ ६२,८८,८६,८०,७८
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