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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ १९१ मिथ्यादृष्टि पर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के होते हैं तथा ३१ प्रकतिक उदयस्थान मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय और तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के होता है। उक्त उदयस्थान वाले जीवों के सिवाय शेष जीव २३ प्रकृतियों का बंध नहीं करते हैं। अतः २३ प्रकृतिक बंधस्थान में उक्त २१ आदि प्रकृतिक ६ उदयस्थान होते हैं। २३ प्रकृतियों को बाँधने वाले जीवों के पाँच सत्तास्थान हैं। उनमें ग्रहण की गई प्रकृतियों की संख्या इस प्रकार है-६२, ८८, ८६, ८० और ७८ । इनका स्पष्टीकरण यह है-२१ प्रकृतियों के उदय वाले उक्त जीवों के तो सब सत्तास्थान पाये जाते हैं, केवल मनुष्यों के ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होता है, क्योंकि मनुष्यगति और मनुष्यनुपूर्वी की उद्वलना करने पर ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। किन्तु मनुष्यों के इन दो प्रकृतियों की उद्वलना सम्भव नहीं है। २४ प्रकृतिक उदयस्थान के समय भी पाँचों सत्तास्थान होते हैं। लेकिन वैक्रिय शरीर को करने वाले वायुकायिक जीवों के २४ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते हुए ८० और ७८ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान नहीं होते हैं। क्योंकि इनके वैक्रियषट्क और मनुष्यद्विक की सत्ता नियम से है । ये जीव वैक्रिय शरीर का तो साक्षात ही अनुभव कर रहे हैं । अतः इनके वैक्रियद्विक की उद्वलना सम्भव नहीं है और इसके अभाव में देवद्विक और नरकद्विक की भी उद्वलना सम्भव नहीं है, क्योंकि वैक्रियषट्क की उद्वलना एक साथ ही होती है, यह स्वाभाविक नियम है और वैक्रियषट्क की उद्वलना हो जाने पर ही मनुष्य द्विक की उद्वलना होती है, अन्यथा नहीं होती है। चूणि में भी कहा है वेउवियछक्कं उम्वलेउं पच्छा मणुयदुगं उम्वलेइ । अर्थात् वैक्रियषट्क की उद्वलना करने के अनन्तर ही यह जीव मनुष्यद्विक की उद्वलना करता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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