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________________ १६४ सप्ततिका प्रकरण नामकर्म के बंधस्थानों और उदयस्थानों का कथन करने के पश्चात् अब सत्तास्थानों का कथन करते हैं। तिदुनउई उगुनउई अट्ठच्छलसी असीइ उगुसीई। अठ्ठयछप्पणत्तरि नव अट्ठ य नामसंताणि ॥ २६ ॥ शब्दार्थ-तिदुनउई-तेरानबै, बानवे, उगुनउई-नवासी अट्ठच्छलसी--अठासी, छियासी, असीइ-अस्सी, उगुसोई --उन्यासी, अठ्ठयछप्पणत्तरी--.-अठहत्तर, छियत्तर, पचहत्तर, नव-नौ, अट्ठ--- आठ, य-और, नामसंताणि-नामकर्म के सत्तास्थान । ___ गाथार्थ-नामकर्म के ६३, ६२, ८६, ८८, ८६, ८०, ७६, ७८, ७६, ७५, ६ और ८ प्रकृतिक सत्तास्थान होते हैं।' विशेषार्थ--इस गाथा में नामकर्म के सत्तास्थानों को बतलाते हुए उनमें गर्भित प्रकृतियों की संख्या बतलाई है कि प्रत्येक सत्तास्थान कितनी-कितनी प्रकृति का है। इससे यह तो ज्ञात हो जाता है कि मामकर्म के सत्तास्थान बारह हैं और वे ६३, ६२ आदि प्रकृतिक हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता है कि प्रत्येक सत्तास्थान में ग्रहण की गई प्रकृतियों के नाम क्या हैं, अत: यहाँ प्रत्येक सत्तास्थान में ग्रहण की गई प्रकृतियों के नामोल्लेखपूर्वक उनकी संख्या को स्पष्ट करते हैं। पहला सत्तास्थान ६३ प्रकृतियों का बतलाया है। क्योंकि नामकर्म की सब उत्तर प्रकृतियां ६३२ हैं, अतः ६३ प्रकृतिक सत्तास्थान में , १ कर्मप्रकृति और पंचसंग्रह सप्ततिका में नामकर्म के १०३, १०२, ६६, ६५, ६३, ६०, ८६, ८४, ८३, ८२, ६ और ८ प्रकृतिक, ये १२ सला'स्थान बतलाये हैं। यहां बताये गये और इन १०३ आदि संख्या के सत्तास्थानों में इतना अंतर है कि ये स्थान बंधन के १५ भेद करके बतलाये गये हैं । ८२ प्रकृतिक जो सत्तास्थान बतलाया है वह दो प्रकार से बतलाया है । विशेष जानकारी वहाँ से कर लेना चाहिये । २ नामकर्म की ६३ उत्तर प्रकृतियों के नाम प्रथम कर्मग्रन्थ में दिये हैं । अतः पुनरावृत्ति के कारण यहां उनका उल्लेख नहीं किया है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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