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षष्ठ कर्मग्रन्थ
एक, इन तेरह प्रकृतियों को मिलाने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ सुभग और दुर्भग का, आदेय और अनादेय का तथा यश: कीर्ति और अयशः कीर्ति का उदय विकल्प से होता है । अतः २x २x२=८ आठ भङ्ग होते हैं । वैक्रिय शरीर को करने वाले देशविरत और संयतों के शुभ प्रकृतियों का उदय होता है ।
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उक्त २५ प्रकृतिक उदयस्थान में शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के पराघात और प्रशस्त विहायोगति, इन दो प्रकृतियों को मिलाने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी २५ प्रकृतिक उदयस्थान की तरह आठ भङ्ग होते हैं ।
अनन्तर प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छवास के मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां भी आठ भङ्ग होते हैं । अथवा उत्तर वैक्रिय शरीर को करने वाले संयतों के शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर पूर्वोक्त २७ प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । संयत जीवों के दुर्भग, अनादेय और अयशः कीर्ति, इन तीन अशुभ प्रकृतियों का उदय न होने से इसका एक ही भङ्ग होता है । इस प्रकार २८ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल नौ भङ्ग होते हैं ।
२८ प्रकृतिक उदयस्थान में सुस्वर के मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी आठ भङ्ग होते हैं । अथवा संयतों के स्वर के स्थान पर उद्योत को मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका एक ही भङ्ग होता है । इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल ६ भङ्ग होते हैं ।
सुस्वर सहित २६ प्रकृतिक उदयस्थान में संयतों के उद्योत नामकर्म को मिलाने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसका सिर्फ एक भङ्ग होता है ।
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