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________________ १६२ सप्ततिका प्रकरण कीर्ति और अयशःकीति के निमित्त से चार भंग होते हैं तथा सूक्ष्म के प्रत्येक और साधारण की अपेक्षा अयश:कीति के साथ दो भंग होते हैं। जिससे छह भंग तो ये हुए तथा वैक्रिय शरीर को करने वाला बादर वायुकायिक जीव जब शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाता है, तब उसके २४ प्रकृतियों में पराघात के मिलाने पर पच्चीस प्रकृतियों का उदय होता है। इसलिये एक भंग इसका होता है। इस प्रकार पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान में सब मिलकर सात भंग होते हैं। ___ अनन्तर प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के पूर्वोक्त २५ प्रकृतियों में उच्छवास के मिलाने पर छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां भी पूर्व के समान छह भंग होते हैं। अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जिस जीव के उच्छवास का उदय न होकर आतप और उद्योत में से किसी एक का उदय होता है, उसके छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी छह भंग होते हैं। वे इस प्रकार हैं-आतप और उद्योत का उदय बादर के ही होता है, सूक्ष्म के नहीं, अत: इनमें से उद्योत सहित बादर के प्रत्येक और साधारण तथा यश:कीर्ति और अयशःकीति, इनकी अपेक्षा चार भंग हुए तथा आतप सहित प्रत्येक के यशःकीति और अयश:कीर्ति, इनकी अपेक्षा दो भंग हुए। इस प्रकार कूल छह भंग हुए। आतप का उदय बादर पृथ्वीकायिक के ही होता है, किन्तु उद्योत का उदय वनस्पतिकायिक के भी होता है और बादर वायुकायिक के वैक्रिय शरीर को करते समय उच्छ वास पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर २५ प्रकृतियों में उच्छ वास को मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अत: यह एक भंग हुआ। इतनी विशेषता समझना चाहिये कि अग्नि कायिक और वायुकायिक जीवों के आतप, उद्योत और यश:कीति का उदय नहीं होता है। इस प्रकार छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में कुल १३ भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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