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________________ ( १४ ) कर्मग्रन्थों के आशय को ही नहीं लिया गया है, बल्कि नाम, विषय, वर्णन-शैली आदि का भी अनुसरण किया है। नवीन कर्मग्रन्थों की विशेषता प्राचीन कर्मग्रन्थकार आचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में जिन-जिन विषयों का वर्णन किया है, वे ही विषय नवीन कर्मग्रन्थकार आचार्य श्रीमद् देवेन्द्रसूरि ने अपने ग्रन्थों में वर्णित किये हैं। लेकिन श्री देवेन्द्र सूरि रचित कर्मग्रन्थों की यह विशेषता है कि प्राचीन कर्मग्रन्थकारों ने जिन विषयों को अधिक विस्तार से कहा है, जिससे कण्ठस्थ करने वाले अभ्यासियों को अरुचि होना सम्भव है, उनको श्री देवेन्द्रसूरि ने अपने कर्मग्रन्थों में एक भी विषय को न छोड़ते हुए और साथ में अन्य विषयों का समावेश करके सरल भाषा पद्धति के द्वारा अति संक्षेप में प्रतिपादन किया है। इससे अभ्यास करने वालों को उदासीनता अथवा अरुचि भाव पैदा नहीं होता है। प्राचीन कर्मग्रन्थों की गाथा संख्या क्रम से १६८, ५७, ५४, ८६ और १०२ हैं और नवीन कर्मग्रंथों की क्रमशः ६०, ३४, २४, ८६ और १०० है । चौथे और पांचवें कर्मग्रन्थों की गाथा संख्या प्राचीन कर्मग्रन्थों जितनी देखकर किसी को यह नहीं समझ लेना चाहिए कि प्राचीन चौथे और पांचवें कर्मग्रन्थ की अपेक्षा नवीन चतुर्थ और पंचम कर्मग्रन्थ में शाब्दिक अन्तर के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है, किन्तु श्रीमद् देवेन्द्रसूरि ने अपने प्राचीन कर्मग्रन्थों के विषयों को जितना संक्षिप्त किया जा सकता था, उतना संक्षिप्त करने के बाद उनका षडशीति और शतक ये दोनों प्राचीन नाम रखने के विचार से कर्मग्रन्थों के अभ्यास करने वालों को सहायक अन्य विषयों का समावेश करके छियासी और सो गाथाएँ पूरी की हैं । चतुर्थ कर्मग्रन्थ में भेद-प्रभेदों के साथ छह भावों का स्वरूप और भेद-प्रभेदों के वर्णन के साथ संख्यात, असंख्यात और अनन्त इन तीन प्रकार की संख्याओं का वर्णन किया है तथा पंचम कर्मग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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