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________________ १२० सप्ततिका प्रकरण मतों से उदयविकल्पों और प्रकृतिविकल्पों के भंगों का कथन करने के बाद अब उदयस्थानों के काल का निर्देश करते हैं ! दस आदिक जितने उदयस्थान और उनके भंग बतलाये हैं, उनका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । " चार प्रकृतिक उदयस्थान से लेकर दस प्रकृतिक उदयस्थान तक के प्रत्येक उदयस्थान में किसी एक वेद और किसी एक युगल का उदय होता है और वेद तथा युगल का एक मुहूर्त के भीतर अवश्य ही परिवर्तन हो जाता है । इसी बात को पंचसग्रह की मूल टीका में भी बतलाया है "वेदेन युगलेन वा अवश्यं मुहूर्तादारतः परावर्तितव्यम् ।" अर्थात् एक मुहूर्त के भीतर किसी एक वेद और किसी एक युगल का अवश्य परिवर्तन होता है । इससे निश्चित होता है कि इन चार प्रकृतिक आदि उदयस्थानों का और उनके भंगों का जो उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है, वह ठीक है । दो और एक प्रकृतिक उदयस्थान भी अधिक-से-अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक पाये जाते हैं । अतः उनका भी उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही है । इन सब उदयस्थानों का जघन्यकाल एक समय इस प्रकार समझना चाहिये कि जब कोई जीव किसी विवक्षित उदयस्थान में या उसके किसी एक विवक्षित भंग में एक समय तक रहकर दूसरे समय में मर कर या परिवर्तन क्रम से किसी अन्य गुणस्थान को प्राप्त होता है तब उसके गुणस्थान में भेद हो जाता है, बन्धस्थान भी बदल जाता है और गुणस्थान के अनुसार उसके उदयस्थान और उसके भंगों में भी अन्तर पड़ जाता है । अत: सब उदयस्थानों और उसके सब भंगों का जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है । इह दशादय उदयास्तभंगाश्च जघन्यत एकसामयिका उत्कर्षत आन्तमहूर्तिकाः । -- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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