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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ११३ चौबीसी होती है तथा चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंधस्थान के तथा अबन्ध के समय एक प्रकृतिक उदयस्थान के क्रमशः चार, तीन, दो, एक और एक भंग होते हैं। इनका जोड़ ग्यारह है । अतः एक प्रकृतिक उदयस्थान के कुल ग्यारह भंग होते हैं । इस प्रकार से गाथा में मोहनीय कर्म के सब उदयस्थानों में भंगों की चौबीसी और फुटकर भंगों को स्पष्ट किया गया है । सप्ततिका नामक षष्ठ कर्मग्रन्थ के टबे में इस गाथा का चौथा चरण दो प्रकार से निर्दिष्ट किया गया है । स्वमत से 'वार दुमिक्कमि इक्कारा' और मतान्तर से 'चवीस गिक्कमिक्कारा' निर्दिष्ट किया है । प्रथम पाठ के अनुसार स्वमत से दो प्रकृतिक उदयस्थान में बारह भंग और दूसरे पाठ के अनुसार मतान्तर से दो प्रकृतिक उदयस्थान में चौबीस भंग प्राप्त होते हैं । आचार्य मलयगिरि ने अपनी टीका में इसी अभिप्राय की पुष्टि इस प्रकार की है- “द्विकोदये चतुर्विंशतिरेका भंगकानाम्, एतच्च मतान्तरेणोक्तम्, अन्यथा स्वमते द्वादशं भंगा वेदितव्याः ।" अर्थात् दो प्रकृतिक उदयस्थान में चौबीस भंग होते हैं । सो यह कथन अन्य आचार्यों के अभिप्रायानुसार किया गया है । स्वमत से तो दो प्रकृतिक उदयस्थान में बारह ही भंग होते हैं । यहाँ गाथा १६ में पाँच प्रकृतिक बंधस्थान के समय दो प्रकृतिक उदयस्थान और गाथा १७ में चार प्रकृतिक बंधस्थान के समय एक प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है । इसमें जो स्वमत से बारह और मतान्तर से चौबीस भंगों का निर्देश किया है, उसकी पुष्टि होती है । पंचसंग्रह सप्ततिका प्रकरण और गो० कर्मकांड में भी इन मतभेदों का निर्देश किया गया है । बंधस्थान उदयस्थानों के संवेध भंगों का विवरण इस प्रकार जानना चाहिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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