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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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चौबीसी उपशम सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों के और चार चौबीसी वेदक सम्यग्दृष्टि जीवों के होती हैं। _पाँच प्रकृतिक बंधस्थान में संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ इनमें से कोई एक तथा तीन वेदों में से कोई एक वेद, इस प्रकार दो प्रकृतियों का एक उदयस्थान होता है-'पंचविहबंधगे पुण उदओ दोण्हं।' इस स्थान में चारों कषायों को तीनों वेदों से गुणित करने पर बारह भंग होते हैं। ये बारह भंग नौवें गुणस्थान के पाँच भागों में से पहले भाग में होते हैं।
पाँच प्रकृतिक बंधस्थान के बाद के जो चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंधस्थान हैं, उनमें एक-एक प्रकृति वाला उदयस्थान होता है । अर्थात् इन उदयस्थानों में से प्रत्येक में एक-एक प्रकृति का उदय होता है-'इत्तो चउबंधाई इक्केक्कुदया हवंति सव्वे वि।' जिसका स्पष्टीकरण नीचे करते हैं।
पाँच प्रकृतिक बंधस्थान में से पुरुषवेद का बंधविच्छेद और उदयविच्छेद एक साथ होता है, अत: चार प्रकृतिक बंध के समय चार संज्वलनों में से किसी एक प्रकृति का उदय होता है। इस प्रकार यहाँ चार भंग प्राप्त होते हैं। क्योंकि कोई जीव संज्वलन क्रोध के उदय से श्रेणि आरोहण करते हैं, कोई संज्वलन मान के उदय से, कोई संज्वलन माया के उदय से और कोई संज्वलन लोभ के उदय से श्रेणि चढ़ते हैं। इस प्रकार चार भंग होते हैं। ___ यहाँ पर कितने ही आचार्य यह मानते हैं कि चार प्रकृतिक बंध के संक्रम के समय तीन वेदों में से किसी एक वेद का उदय होता है। अत: उनके मत से चार प्रकृतिक बंध के प्रथम काल में दो प्रकृतियों
का उदय होता है और इस प्रकार चार कषायों को तीन वेदों से गुणित Jain Education International For Private & Personal Use Only
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