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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ६७ प्रयोग विशेष से अबाधाकाल के भीतर भी उदीरणोदय हो सकता है, इसमें कोई बाधा नहीं आती है । पहले जो सात प्रकृतिक उदयस्थान बताया है, उसमें भय और जुगुप्सा के या भय और अनन्तानुबन्धी के अथवा जुगुप्सा और अनन्तानुबन्धी के मिलाने पर नौ प्रकृतिक उदयस्थान तीन प्रकार से प्राप्त होता है । इन तीन विकल्पों में भी पूर्वोक्त क्रम से भंगों की एकएक चौबीसी होती है । इस प्रकार नौ प्रकृतिक उदयस्थान में भी भंगों की तीन चौबीसी जानना चाहिए । पूर्वोक्त सात प्रकृतिक उदयस्थान में एक साथ भय, जुगुप्सा और अनन्तानुबन्धी के मिलाने पर दस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से भंगों की एक चौबीसी होती है । इस प्रकार सात प्रकृतिक उदयस्थान की एक चौबीसी, आठ प्रकृतिक उदयस्थान की तीन, नौ प्रकृतिक उदयस्थान की तीन और दस प्रकृतिक उदयस्थान की एक चौबीसी होती है । कुल मिलाकर बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में आठ चौबीसी होती हैं--सर्वसंख्या द्वाविंशतिबंधे अष्टौ चतुर्विंशतयः । बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में उदयस्थानों का निर्देश करने के न अब इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान में उदयस्थान बतलाते हैं कि-'नव इक्कवीस सत्ताइ उदयठाणाई' - अर्थात् इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान में सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान हैं। वे इस प्रकार हैं- इनमें अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन प्रकार की क्रोधादि चार कषायों में से कोई एक जाति की चार कषायें, तीन वेदों में से कोई एक वेद और दो युगलों में से कोई एक युगल, इन सात प्रकृतियों का उदय इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान में नियम से होता है । यहाँ भी पूर्वोक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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