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________________ ६४ सप्ततिका प्रकरण में से किसी एक को मिलाने से तीसरा आठ प्रकृतियों का उदय, इस तरह आठ प्रकृतिक उदयस्थान के तीन प्रकार समझना चाहिए। अत: इन भंगों की तीन चौबीसियाँ होती हैं। वे इस प्रकार हैं पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के उदय में भय का उदय मिलाने पर आठ प्रकृतियों के उदय के साथ भंगों की पहली चौबीसी हुई। पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के उदय में जुगुप्सा का उदय मिलाने पर आठ के उदय के साथ भंगों की दूसरी चौबीसी तथा पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के उदय में अनन्तानुबंधी क्रोधादि में से किसी एक प्रकृति के उदय को मिलाने पर आठ के उदय के साथ भंगों की तीसरी चौबीसी प्राप्त होती है। इस प्रकार आठ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते भंगों की तीन चौबीसी होती हैं। सात प्रकृतिक उदयस्थान में और भय व जुगुप्सा के उदय से प्राप्त होने वाले आठ प्रकृतिक उदयस्थानों में अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क को ग्रहण न करने तथा बन्धावलि के बाद ही अनन्तानुबन्धी के उदय को मानने के सम्बन्ध में जिज्ञासाओं का समाधान करते हैं। उक्त जिज्ञासाओं सम्बन्धी आचार्य मलयगिरि कृत टीका का अंश इस प्रकार है___"ननु मिथ्यादृष्टेरवश्यमनन्तानुबन्धिनामुदयः सम्भवति तत् कथमिह मिथ्याष्टिः सप्तोदये अष्टोदये वा कस्मिश्चिदनन्तानुबन्ध्युदयरहितः प्रोक्तः ? उच्यते-इह सम्याष्टिना सता केनचित् प्रथमतोऽनन्तानुबन्धिनो विसंयोजिताः, एतावतैव च स विश्रान्तो न मिथ्यात्वादिक्षयाय उद्युक्तवान् तथाविधसामन्यभावात्, ततः कालान्तरे मिथ्यात्वं गतः सन् मिथ्यात्वप्रत्ययतो भूयोऽप्यनन्तानुवन्धिनो बध्नाति, ततोबन्धावलिका यावत् नाद्याप्यतिक्रामति तावत् तेषामुदयो न भवति, बन्धावलिकायां त्वतिक्रान्तायां भवेदिति ।। १ सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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